जयशंकर प्रसाद जी का जीवन परिचय ✅Biography of Jaishankar Prasad in Hindi tips
जीवन परिचय(1889-1937)💖
प्रसिद्ध रचनाकार जयशंकर प्रसाद जी का जन्म 30 जनवरी १८८९ (1889) में उत्तर प्रदेश के वाराणसी Varanasi Uttar Pradesh के काशी में हुआ था| इनके पितामह का नाम शिवरतन साहू और पिता का नाम देवी प्रसाद साहू था| प्रसाद जी का बाल्यकाल सुख के साथ व्यतीत हुआ। इन्होंने बाल्यावस्था childhood में ही अपनी माता के साथ धाराक्षेत्र, ओंकारंश्वर, पुष्कर, उज्जैन और ब्रज आदि तीर्यों की यात्रा की। अमरकण्टक पर्वत श्रेणियों के बीच, नर्मदा में नाव के द्वारा भी इन्होंने यात्रा की। यात्रा से लौटने के पश्चात् प्रसाद जी के पिता का स्वर्गवास हो गया। पिता की मृत्यु के चार वर्ष पश्चात् इनकी माता भी इन्हेंं संसार में अकेला छोड़कर चल बसीं।
आरम्भिक शिक्षा(Initial Education)
प्रसाद जी के पालन-पोषण और शिक्षा-दीक्षा का प्रबन्ध उनके बड़ भााई शम्भूरत्न जी ने किया। उन्होंने विद्यालय शिक्षा केवल आठवीं कक्षा तक प्राप्त की परंतु स्वशिक्षा एवं शिक्षा के प्रति जागरूकता ने उन्हें महाज्ञानी बना दिया था| इसलिए उन्होंने संस्कृत, पाली, उर्दू और अंग्रेजी भाषाओं तथा साहित्य का गहन अध्ययन किया इसके अतिरिक्त उन्होंने इतिहास, दर्शन, धर्म शास्त्र और पुरातत्व विषयों में महारथ हासिल की थी| सर्वप्रथम प्रसाद जी का नाम ‘क्वीन्स कॉलेज’ Queens College में लिखवाया गया, लेकिन स्कूल की पढ़ाई में इनका मन न लगा, इसलिए इनकी शिक्षा का बन्ध घर पर ही किया गया। घर पर ही वे योग्य शिक्षकों से अंग्रेजी और संस्कृत का अध्ययन करने लगे। प्रसाद जी को बचपन से ही साहित्य के प्रति अनुराग था। वे प्रास: साहित्यिक पुस्तकें पढ़ा करते थे और अवसर मिलने पर कविता भी किया करते थे। पहल तो इनके भाई इनकी काव्य-रचना में बाधा उालते रहे, परन्तु जब इन्होंने देखा कि प्रसाद जी का मन काव्य-रचना में अधिक लगता है, तब इन्होंने इसकी पूरी स्वतंत्रता इन्हें दे दी। प्रसाद जी के हदय को गहरा आघात लगा। इनकी आर्थिक स्थिति बिगड़ गई तथा व्यापार भी समाप्त हो गया। पिता जी ने सम्पत्ति बेच दी। इससे ऋण के भार से इन्हें मुक्ति भी मिल गई, परन्तु इनका जीवन संघर्शों और झंझावातों में ही चक्कर खाता रहा|

रचनाएँ(Compositions)
- नाटक – अजातशत्रु, स्कंदगुप्त, चन्द्रगुप्त, राजश्री, ध्रुवस्वामिनी |
- उपन्यास – कंकाल, तितली, इरावती ( अपूर्ण ) |
- कहानी संग्रह – आंधी, इंद्रजाल, छाया, प्रतिध्वनी और आकाशदीप|
- निबंध संग्रह – काव्य और कला तथा अन्य निबंध|
- कविताएँ – झरना, आँसू, लहर, कामायनी, कानन कुसुम, और प्रेमपथिक (कविताएँ)|
प्रसाद जी बहुत समय शांत तथा गंभीर प्रकृति के व्यक्ति थे वह हमेशा दूसरों की बुराई अपनी तारीफ से बचा करते थे वह बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे मौलिक रूप से वे कवि थे किंतु उन्होंने नाटक उपन्यास कहानी निबंध आदि अनेक साहित्यिक विधाओं में श्रेष्ठतम रचनाओं का सृजन किया राष्ट्रीय जागरण एवं सामाजिक जागृत प्रसाद साहित्य के दो मूल तत्व है संपूर्ण साहित्य में विशेष कार नाटकों में प्राचीन भारतीय संस्कृति के गौरव के माध्यम से प्रसाद जी ने यह काम किया उनकी कविताओं कहानियों में भारतीय संस्कृति और जीवन मूल्यों की झलक मिलती है प्रसाद जी ने कविता के साथ साथ नाटक उपन्यास कहानी संग्रह निबंध और कविताएं आदि अनेक साहित्यिक विधाओं में लेखन का कार्य भी किया है
प्रसाद जी के काव्य में खड़ी बोली हिंदी का परिष्क्रत रूप दृष्टिगत होता है| इनकी प्रारंभिक रचनाओं की भाषा सहज एवं कोमलकांत पदावली से युक्त है| परवर्ती काव्य की भाषा में तत्सम शब्दों की प्रधानता है| प्रसाद जी के काव्य में लक्षणा एवं व्यंजना शब्द शक्ति का पर्याप्त प्रयोग हुआ है| ध्व्यनात्मकता, संगीतात्मकता, एवं चित्रात्मकता इनकी रचनाओं का सहज गुण है|प्रतीक योजना बिम्ब विधान एवं अलंकारों का सुन्दर प्रयोग प्रसाद जी के काव्य को उत्कृष्ट बना देता है
भाषा शैली(Language Style)
लेखक
जयशंकर प्रसाद जी शुल्क युग के लेखक थे| उन्होंने कई प्रकार की सम्पादन का कार्य भी किया था|
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