संत कबीर दास का जीवन परिचय 🔅Biography of Sant Kabir Das in Hindi tips

जीवन परिचय (1455-1551)

कबीर दास जी का जन्म 15 वीं शताब्दी के भारत के भक्तिकाल युग में माना जाता है| कुछ लोगो का यह भी मत है की इनका जन्म 1455ई. भी माना जाता है| शुरुआत से ही इनका जीवन घोर कठिन परिस्थितियों में बीता था| भारतीय समाज में संत महात्कमा कबीरदास जी के जन्म की बात को लेकर अनेक विद्वानों का मत अलग – अलग हैं|कबीरदास नीमा और नीरू के अपने संतान थे, या उन दोनों ने इन्हें सिर्फ पाला था| कहा जाता हैं की नीमा और नीरू को यह बच्चा काशी के लहरतारा तालाब के पास मिला था| जिनको आज हमलोग कबीरदास जी के नाम से जानते है| कुछ लोग का मानना हैं की कबीरदास एक विधवा ब्रहमनी के संतान थे| जिसको रामानन्द स्वामी ने गलती से पुत्रवती होने का आशीर्वाद दे दिया था जिससे ब्रहमनी को पुत्र की प्राप्ति हुई और वह उस बच्चे को काशी के लहरतारा ताल के पास फेंक आई थी जब की कबीर पंथियों का मानना हैं की कबीरदास का जन्म काशी के लहरतारा ताल में उपजे कमल के पुष्प के उपर हुआ था विद्वानों का कबीरदास के जन्म को लेकर अलग – अलग मत होने के बावजूद सभी विद्वान कबीरदास के जन्म स्थान काशी को ही मानते हैं|

प्रारम्भिक शिक्षा

वेसे तो कहा जाता है की कबीरदास जी की कोई पारम्परिक शिक्षा नहीं हुई थी| लेकिन उस समय के काशी के मसहुर संत आचार्य रामानन्द को वह अपना गुरु बनना चाहते थे. जब कबीरदास रामानन्द के आश्रम गए तो वह कबीरदास को दीक्षा देने से माना कर दिया. लेकिन कबीरदास ने भी मन बना लिया तह की वह रामानन्द को आपना गुरु बना कर ही रहेंगे| आचार्य रामानन्द रोज सुबह चार बजे गंगा स्नान के लिए पंचगंगा घाट पर जाते थे| कबीरदास ने सोंचा की आचार्य जी से पहले जाकर पंचगंगा घाट की सीढियों पर जाकर सो गए और जब आचार्य रामानन्द ने सुबह गंगा स्नान के लिए पंचगंगा घाट की सीढियों से उतर रहे थे| तभी आचार्य जी का पैर कबीरदास के शारीर के उपर पड़ गया. तभी रामानन्द के मुख से राम – राम निकल गया आचार्य के मुख से निकले हुए राम – राम को ही कबीरदास ने गुरु दीक्षा मन्त्र मान लिया और स्वामी आचार्य रामानन्द को अपना गुरु स्वीकार कर लिया|

वैवाहिक जीवन

कबीरदास की शादी लोई से हुई थी| उनके एक पुत्र जिनका नाम कमल और एक पुत्री भी थी जिनका नाम कमली था| अपने परिवार के जीविकापार्जन के लिए कबीरदास जुल्हे का काम करते थे| कबीरदास का मानना था की लोगों को अपने कर्मो का फल मिलता हैं| एक मान्यता के अनुसार कहा जाता हैं. की जब किसी की काशी में मृत्यु होती हैं| तो उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है| और जिनको मगहर में मृत्यु होती हैं| उसे नरकलोक की प्राप्ति होती हैं| इसलिए अंत समय में कबीरदास ने इस अंधविश्वास को ख़त्म करने के लिए मगहर चले गए. और वही पर उनकी मृत्यु हो गई. मगहर में उनकी समाधी और मजार आज भी स्थित हैं|

प्रमुख रचनाएँ

इनकी रचनाओं में अंधविश्वास, सामाजिक कुरीतियों, कर्मकाण्ड, सामाजिक बुराईयों का आलोचना मिल जायगी कबीरदास किसी धर्म को नहीं मानते थे| यह एक धर्म निरपेक्ष थे| इसलिए उनको हिन्दू और मुसलमानों दुआरा इनके विचारों पर दोनों तरफ से धमकियाँ मिलती रहती हैं| कबीरदास कर्म को प्रधान मानते थे| और यह हिन्दू और मुसलिम धर्म के आलोचक थे|कबीरदास पढ़े लिखे नहीं थे उन्हें लिखना नहीं आता था इसलिए वह खुद ग्रन्थ नहीं लिख पाते थे तो जब वह बोलते थे जो उनके मुख से निकले हुए शब्द को उनके शिष्य लिख लेते थे कबीर के सभी रचनाओं में राम नाम की महिमा होती थी|

भाषा शैली

कबीरदास की भाषा शैली बिलकुल साधारण हैं जो लोगों को आसानी से समझ में आ जाए  इनकी भाषा में ब्रज भाषा, अवधि, खड़ी बोली, पंजाबी, हरियाणवी और राजस्थानी भाषा सम्मलित हैं कबीरदास की वाणीं को धर्मदास ने संग्रह किया और बीजक नाम ग्रन्थ में लिखा हैं जिसको तीन भागों में लिखा गया हैं 1 साखी 2 सबद 3 रमैनी|

निधन

कबीरदास के निधन को लेकर भी अनेक विद्वानों का मत अलग – अलग हैं| कुछ इनकी मृत्यु 1518 ईo में मानते हैं| तो कुछ लोग 1448 ईo में मानते हैं| तो कुछ विद्वानों का यह भी मानना है की इनकी मृत्यु सन 1551ई. में हुई थी|


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