उस्मानी साम्राज्य यानि ऑटोमन एम्पायर का इतिहास 👑 History of the Osmani Empire, that is, the Ottoman Empire
उस्मानी साम्राज्य का उदय 👑 Rise of the Osmani empire
तुर्की की का और एशिया का सबसे बड़ा साम्राज्य ऑटोमन साम्राज्य की गाथा का क्या ही कहना l तो दोस्तों आज हम इनकी के बारे में बताएँगे आपको, सन् 1300 तक सेल्जुकों का खात्मा हो गया था। पश्चिम अनातोलिया में अर्तग्रुल एक तुर्क प्रधान था। एक समय जब वो एशिया माइनर की तरफ़ कूच कर रहा था तो उसने अपनी चार सौ घुड़सवारों की सेना को भाग्य की कसौटी पर आजमाया। उसने हारते हुए पक्ष का साथ दिया और युद्ध जीत लिया। उन्होंने जिनका साथ दिया वे सेल्जक थे। सेल्जक प्रधान ने अर्तग्रुल को उपहार स्वरूप एक छोटा-सा प्रदेश दिया। आर्तग्रुल के पुत्र उस्मान ने 1241 में अपने पिता की मृत्यु के पश्चात प्रधान का पद हासिल किया। उसने 1299 में अपने आपको स्वतंत्र घोषित कर दिया। यहीं से उस्मानी साम्राज्य की स्थापना हुई। इसके बाद जो साम्राज्य उसने स्थापित किया उसे उसी के नाम पर उस्मानी साम्राज्य कहा जाता है (इसी को अंग्रेजी में ऑटोमन एम्पायर भी कहा जाता है)।
विकास, विस्तार और चरमोत्कर्ष 👑 Growth, expansion and climax
मुराद द्वितीय के बेटे महमद द्वितीय ने राज्य और सेना का पुनर्गठन किया और 29 मई 1853 को कॉन्स्टेंटिनोपल (इस्तांबुल का तत्कालीन नाम) जीत लिया। महमद ने रूढ़िवादी चर्च की स्वायत्तता बनाये रखी। बदले में चर्च ने उस्मानी प्रभुत्ता स्वीकार कर ली। चूँकि बाद के बैजेन्टाइन साम्राज्य (Bazantine Empire) और पश्चिमी यूरोप के बीच सम्बन्ध अच्छे नहीं थे इसलिए अधिकतर रूढ़िवादी ईसाईयों (Orthodox Christians) ने विनिशिया के शासन के बजाय उस्मानी शासन को ज़्यादा पसंद किया। पन्द्रहवीं और सोलवी शताब्दी में उस्मानी साम्राज्य का विस्तार हुआ। उस दौरान कई प्रतिबद्ध और प्रभावी सुल्तानों के शासन में साम्राज्य खूब फला फूला। यूरोप और एशिया के बीच के व्यापारिक मार्गों पर भौगोलिक दृष्टि (Geographical point of view) से नियंत्रण के कारण उसका आर्थिक विकास (Economic Development) भी काफी हुआ। सुल्तान सलीम प्रथम (1512 – 1520) ने पूर्वी और दक्षिणी मोर्चों पर चल्द्रान के युद्ध (War of the chaldrans) में फ़ारस के सफ़ावी राजवंश के शाह इस्माइल को पराजित कर उसने नाटकीय रूप से साम्राज्य का विस्तार किया। उसने मिस्र में उस्मानी साम्राज्य का विस्तार किया और लाल सागर में नौसेना खड़ी की। उस्मानी साम्राज्य के इस विस्तार के बाद पुर्तगाली और उस्मानी साम्राज्य के बीच उस इलाके की प्रमुख शक्ति बनने की स्पर्धा (Competition to become the dominant power) आरम्भ हो गई।
मोहैच का युद्ध, मध्य पूर्व विजय 👑 War of the Mohawk, Middle East Victory
शानदार सुलेमान (1512-1566) ने 1521 में बेलग्रेड पर क़ब्ज़ा किया। उसने उस्मानी-हंगरी युद्धों में हंगरी राज्य के मध्य और दक्षिणी हिस्सों पर विजय प्राप्त की। 1521 की मोहैच युद्ध में एतिहासिक विजय प्राप्त करने के बाद उसने तुर्की का शासन आज के हंगरी (पश्चिमी हिस्सों को छोड़ कर) और अन्य मध्य यूरोपीय प्रदेशों (Central European territories) में स्थापित किया। 1529में उसने वियना पर चढाई की किन्तु शहर को जीत पाने में असफल रहा। 1532 में उसने वियना पर दुबारा हमला किया पर गून्स की घेराबंदी के दौरान उसे वापस धकेल (Pushing) दिया गया। समय के साथ ट्रान्सिल्व्हेनिया, वलाचिया और मोल्दाविया उस्मानी साम्राज्य की अधीनस्त रियासतें (Subordinate states) बन गयी। पूर्व मे, 1535 में उस्मानी तुर्कों ने फारसियों से बग़दाद जीत लिया और इस तरह से उन्हें मेसोपोटामिया पर नियंत्रण और फारस की खाड़ी जाने के लिए नौसनिक मार्ग मिल गया।
हंगरी का विलय 👑 Merger of Hungary
फ्रांस और उस्मानी साम्राज्य हैब्सबर्ग के शासन के विरोध में संगठित हुए और पक्के सहयोगी बन गए। फ्रांसिसियो ने 1583 में नीस पर और 1553 में कोर्सिका पर विजय प्राप्त की। ये जीत फ्रांसिसियो और तुर्को के संयुक्त प्रयासों का परिणाम थी जिसमे फ्रांसिसी राजा फ्रांसिस प्रथम और सुलेमान की सेनायों ने भाग लिया था और जिसकी अगुवाई उस्मानी नौसेनाध्यक्षों बर्बरोस्सा हय्रेद्दीन पाशा और तुर्गुत रेइस ने की थी। 1583 में नीस पर अधिकार मिलने से एक माह पूर्व फ्रांसिसियो ने उस्मानियो को सेना की एक टुकड़ी दे कर एस्तेर्गोम पर विजय प्राप्त करने में सहायता की थी। 1583 के बाद भी जब तुर्कियों का विजयाभियान जारी रहा तो आखिरकार 1547 में हैब्सबर्ग के शासक फेर्दिनंद ने हंगरी का उस्मानी साम्राज्य में आधिकारिक रूप से विलय स्वीकार कर लिया। सुलेमान के शासनकाल के अंत तक साम्राज्य की कुल जनसँख्या डेढ़ करोड़ थी जो की तीन महाद्वीपों में फैली हुई थी। उसके अलावा साम्राज्य एक नौसनिक महाशक्ति बन चुका था जिसका अधिकांश भूमध्य सागर पर नियंत्रण था। इस समय तक उस्मानी साम्राज्य यूरोप की राजनीति का एक प्रमुख हिस्सा बन चुका था और पश्चिम में कई बार इसकी राजनितिक और सैनिक सफलता की तुलना रोमन साम्राज्य से की जाती थी। उदहारणस्वरुप इतालवी विद्वान फ्रांसेस्को संसोविनो और फ़्रांसीसी राजनितिक दर्शनशास्त्री जीन बोदिन ने ऐसी तुलना की थी। बोदिन ने लिखा था – इकलौती शक्ति जो की सही रूप से सार्वभौमिक शासक होने का दावा कर सकती है वो उस्मानी सुल्तान है। सिर्फ वो ही सही रूप से रोमन सम्राट के वंशज होने का दावा कर सकते हैं”।
विद्रोह और पुनरुत्थान (1566-1683) 👑 Revolt and Resurrection (1566–1683)
स्ज़िगेत्वर अभियान के बारे में उस्मानी लघुचित्र जिसमे उस्मानी सेनायों और ततरो को अग्रसर दिखाया गया है।
पिछली शताब्दी का असरदार सैनिक और नौकरशाही का तंत्र कमज़ोर सुल्तानों के एक दीर्घ दौर के कारण दवाब में आ गया। धार्मिक और बौद्धिक रूढ़िवादिता (Intellectual conservatism) की वजह से नवीन विचार दब गए जिससे उस्मानी लोग सैनिक प्रौद्योगिकी (Technology) के मामले में यूरोपियो से पिछड़ गए। पर इस सब के बावजूद, साम्राज्य एक प्रमुख विस्तारवादी शक्ति बना रहा। विस्तार का ये दौर 1683 में वियना की लड़ाई तक बना रहा जिसके बाद यूरोप में उस्मानी साम्राज्य के विस्तार का दौर समाप्त हो गया।पश्चिमी यूरोप के प्रदेशों ने नए समुद्री व्यपारिक मार्गो (Sea trade routes) की खोज कर ली जिससे वो उस्मानी व्यापार के एकाधिकार से बच गए। 1448 में पुर्तगालियों ने केप ऑफ गुड होप की खोज की। इसी के साथ हिन्द महासागर में चलने वाले उस्मानी और पुर्तगालियों (Portuguese) के नौसनिक युद्धों के दौर का प्रारंभ हो गया। ये युद्ध पूरी सोलहवीं शताब्दी में चलते रहे। उधर नयी दुनिया से स्पेनी चाँदी की बाढ़ आ जाने से उस्मानी मुद्रा गिर गयी और मुद्रास्फीति अनियंत्रित रूप से बढ़ गयी। इवान चतुर्थ ने ततर खानैत की कीमत पर रुसी जारशाही को वोल्गा और कैस्पियन (Volga and Caspian) के क्षेत्रों में फलाया। 1571 में क्रिमीआ के खान देव्लेट प्रथम जीरेय ने उस्मानियो की मदद से मास्को को जला कर ख़ाक कर दिया। अगले साल उसने फिर हमला किया पर मोलोदी की लड़ाई में उसे वापस धकेल दिया गया। क्रिमीआइ खानैत ने पूर्वी यूरोप पर हमला कर गुलाम (Slaves) बनाने का दौर जारी रखा और सत्रवहीं सदी के अंत तक पूर्वी यूरोप की एक प्रमुख शक्ति बना रहा। दक्षिणी यूरोप में स्पेन के फिलिप द्वितीय (Philip II of Spain) के नेतृत्व में एक कैथोलिक गठबंधन ने 1571 की लेपैंटो की लड़ाई में उस्मानी बेड़े के ऊपर विजय प्राप्त की। यह हार उस्मानियो के अजय होनी की छवि को एक शुरुआती झटका था। उस्मानियो को जहाजों (The ships) के मुकाबले अनुभवी लोगो का ज्यादा नुकसान हुआ था। जहाजों का नुकसान फटाफट पूरा कर लिया गया। उस्मानी नौसेना जल्दी उबरी और 1573 में उसने वेनिस को एक शांति समझौते के लिए राज़ी कर लिया। इस समझौते से उस्मानियो को उत्तरी अफ्रीका में विस्तार करने और संगठित होने का मौका मिल गया।
तैमूर लंग और उस्मानिया सल्तनत 👑 Taimur Lung and Osmania Sultanate
कैरलाइन फिंकल लिखती हैं कि तैमूर लंग अपने घर से जंग की मुहिम पर निकले तो उसके 30 साल के बाद वो चीन और ईरान से होते हुए अनातोलिया में उस्मानी सुल्तानों के इलाक़े तक पहुंचे l फिंकल कहती हैं कि तैमूर लंग अपने आपको चंगेज़ ख़ान का वारिस समझते थे और इसी वजह से उनके ख्याल में अनातोलिया सल्जूक़ मंगोल इलाक़ों (Anatolia Saljuq Mongol areas) पर उनका हक़ था l उन्होंने अनातोलिया की विभिन्न रियासतों के बीच मतभेद का फ़ायदा उठाने की कोशिश की, लेकिन उस्मानी सुल्तान बायज़ीद की नज़र भी उन्हीं रियासतों पर थी l फिंकल बताती हैं कि इसका निष्कर्ष (The conclusion) ये निकला कि तैमूर लंग और बायज़ीद की फ़ौजें 28 जुलाई 1402 को इंक़रा के पास आमने-सामने आ गईं l इस जंग में सुल्तान बायज़ीद की हार हुई और वो इसके बाद ज़्यादा देर ज़िंदा नहीं रहे l उनकी मौत कैसे हुई? फिंकल कहती हैं कि इसके बारे में कई मत हैं l लेकिन आज के विषय के सन्दर्भ में अहम बात ये है कि उस्मानिया सल्तनत एक मुश्किल दौर (bumpy ride) में दाख़िल हो गई l अगले 20 साल तक उस्मानिया सल्तनत को गृह युद्ध (Civil war) की वजह से भारी तबाही और बर्बादी (Devastation and destruction) का सामना करना पड़ा l बायज़ीद प्रथम के चारों बेटों के अपने-अपने हज़ारों समर्थक (Supporter) थे और वो सालों तक आपस में लड़ते रहे l गृह युद्ध के अंत में सुल्तान का सबसे छोटा बेटा मेहमत प्रथम अपने भाइयों को हरा कर 1413 में उस्मानिया सल्तनत का अकेला वारिस (Lone heir) बना l सुल्तान मेहमत प्रथम को उस्मानिया सल्तनत की अपने पिता सुल्तान बायज़ीद के दौर में जो सीमाएं (Limitations) थी उन तक पहुंचाने में और कई साल जद्दोजहद (Struggle) करनी पड़ी l इसी दौरान नए सुल्तान और तैमूर लंग के बेटे शाहरुख़ के बीच पत्रों के ज़रिए एक दिलचस्प बात चीत हुई जो हमारे आज के विषय पर रौशनी डालती है l कैरलाइन फिंकल लिखती हैं कि 1416 में शाहरुख़ ने सुल्तान मेहमत प्रथम को पत्र लिखा और अपने भाइयों को क़त्ल करने पर विरोध (Protest against murder) किया तो उस्मानी सुल्तान का जवाब था कि एक देश में दो बादशाह नहीं रह सकते, हमारे दुश्मन (enemy) जिन्होंने हमें घेरा हुआ है हर समय मौक़े की तलाश में रहते हैं l यहां ये बात अहम है कि सुल्तान बायज़ीद ख़ुद अपने भाई ‘को क़त्ल कराने के’ बाद तख़्त पर बैठे थे. सन् 1389 में उस्मानिया सल्तनत के तीसरे सुल्तान मुराद प्रथम सर्बिया के ख़िलाफ़ जंग के दौरान मर गए l उस समय पर शहज़ादे बायज़ीद ने अपने भाई को मरवा कर सल्तनत का कार्यभार (Sultanate charge) संभाल लिया था l
1571 का लेपंतो का युद्ध 👑 Battle of Lepanto of 1571
दूसरी तरफ हैब्सबर्ग के मोर्चे पर चीजें स्थिर हो रही थी। ऐसा हैब्सबर्ग की रक्षा प्रणाली के मजबूत होने से उत्पन्न हुए गतिरोध की वजह से था। हैब्सबर्ग ऑस्ट्रिया से चलने वाली लम्बी लड़ाई की वजह से आग्नेयास्त्रों से लैस बड़ी पैदल सेना की जरुरत महसूस हुई। इस वजह से सेना में भर्ती के नियमों में छूट दी गयी। इसने टुकड़ियों में अनुशासनहीनता और निरंकुशता की समस्या उत्पन्न कर दी जो कभी पूरी तरह हल नहीं हो पाई। माहिर निशानेबाजों (सेकबन) की भी भर्ती की गयी और बाद में जब सैन्यविघटन हुआ तो वो जेलाली की दंगो में लूटमार में शामिल हो गए। इससे सोलहवीं सदी की अंत में और सत्रहवीं सदी के अंत में अनातोलिया में व्यापक अराजकता (Widespread chaos) का ख़तरा पैदा हो गया। 1600 तक साम्राज्य की जनसँख्या तीन करोड़ तक पहुँच गयी जिससे जमीन की कमी होने से सरकार पर दवाब और बढ़ गया।
1683 में वियना की दूसरी घेराबंदी 👑 Second siege of Vienna in 1683
अपने दीर्घ शासनकाल में मुराद चतुर्थ ने केंद्रीय सत्ता को फिर स्थापित किया और 1635 में येरेवन और 1639में बगदाद को सफाविदों से जीत लिया। महिलायों की सल्तनत एक ऐसा समय था जब युवा सुल्तानों की माओं ने अपने बेटों की और से हुकूमत की। इस समय की सबसे प्रसिद्ध महिला कोसिम सुल्तान और उसकी बहू तुर्हन हतिस थी। उनकी दुश्मनी का अंत 1651 में कोसिम की हत्या (killing) से हुआ। कोप्रुलू के दौर के दौरान (during) साम्राज्य का प्रभावी नियंत्रण कोप्रुलू परिवार से आने वाले प्रधान वजीरों के हाथ में रहा। कोप्रुलू परिवार के वजीरों ने नयी सैनिक सफलताएँ हासिल की जिसमे शामिल है ट्रान्सिल्व्हेनिया पर दुबारा अधिकार स्थापित करना, 1669 में क्रीट पर विजय और पोलिश दक्षिणी यूक्रेन (Polish Southern Ukraine) में विस्तार l पुनः अधिकार स्थापित करने के इस दौर का बड़ा विनाशकारी अंत हुआ जब महान तुर्की युद्ध के दौरान मई 1683 में प्रधान वजीर कारा मुस्तफा पाशा ने एक विशाल सेना (Large army) लेकर वियना की घेराबंदी (The siege) की। आखिरी हमले में देरी की वजह से वियना की लड़ाई में हैब्सबर्ग, जर्मनी और पोलैंड की सयुंक्त सेनायों ने उस्मानी सेना को रोंद डाला। इस सयुंक्त सेना की अगुवाई पोलैंड का राजा जॉन तृतीय कर रहा था। पवित्र संघ (Holy union) के गठबंधन ने वियना में मिली जीत का फायदा (Advantage) उठाया और इसका समापन कर्लोवित्ज़ की संधि (Treaty of Karlovitz) के साथ हुआ जिसने महान तुर्की युद्ध का अंत कर दिया। उस्मानियों ने कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों का नियंत्रण खो दिया (कुछ का हमेशा के लिए)। मुस्तफा द्वितीय ने 1695-1696 में हंगरी में हैब्सबर्ग के विरुद्ध जवाबी हमला किया पर 11 सितम्बर 1697 को वो जेंता की लड़ाई में विनाशकारी (Destructive) रूप से हार गया।
ठहराव और दोषनिवृत्ति (1683-1827) 👑 Stagnation and conviction (1683–1827)
सलीम तृतीय टोपकापी महल के फैलीसिटी के गेट पर गणमान्य व्यक्तियों का अभिवादन (Greetings of individuals) करते हुए। इस अवधि के दौरान (During the period) रूसी विस्तार एक बड़े और बढ़ते खतरे को प्रस्तुत कर रहा था। तदनुसार, स्वीडन के राजा चार्ल्स बारहवें को 1709 में पोल्टावा की लड़ाई (1700-1721 के महान उत्तरी युद्ध का हिस्सा।) में रूस द्वारा हार के बाद ओटोमन साम्राज्य (Ottoman Empire) में एक सहयोगी के रूप में स्वागत किया गया। चार्ल्स बारहवें ने रूस पर युद्ध की घोषणा करने को तुर्क सुल्तान अहमद तृतीय को राजी कर लिया, जिसके परिणत 1710-1711 की पृथ नदी अभियान में तुर्को की जीत हुई। 1716-1718 के ऑस्ट्रो-तुर्की युद्ध के बाद पैसरोविच की संधि (Treaty of pasarovich) ने बनत, सर्बिया और “लिटिल वलाकिया” (Altenia) को ऑस्ट्रिया को देने की पुष्टि की। इस संधि से ये पता चला कि उस्मानी साम्राज्य बचाव की मुद्रा में है और यूरोप में इसके द्वारा कोई भी आक्रामकता पेश करने की संभावना नहीं है
उस्मानी साम्राज्य सोलहवीं-सत्रहवीं शताब्दी में अपने चरम शक्ति पर 👑 The Osmani Empire at its peak in the sixteenth-seventeenth century
उस्मानी सलतनत 1299 में पश्चिमोत्तर अनातोलिया में स्थापित एक तुर्क राज्य था। महमद द्वितीय द्वारा 1453 में क़ुस्तुंतुनिया जीतने के बाद यह एक साम्राज्य में बदल (Turned into an empire) गया। प्रथम विश्वयुद्ध में 1919 में पराजित (Defeated) होने पर इसका विभाजन (division) करके इस पर अधिकार कर लिया गया। स्वतंत्रता के लिये संघर्ष (Struggle) के बाद 29 अक्तुबर सन् 1923 में तुर्की गणराज्य की स्थापना पर इसे समाप्त माना जाता है। उस्मानी साम्राज्य सोलहवीं-सत्रहवीं शताब्दी ( sixteenth-seventeenth century) में अपने चरम शक्ति पर था। अपनी शक्ति के चरमोत्कर्ष (Power climax) के समय यह एशिया, यूरोप तथा उत्तरी अफ़्रीका (Europe and North Africa) के हिस्सों में फैला हुआ था। यह साम्राज्य पश्चिमी तथा पूर्वी सभ्यताओं (Empire Western and Eastern Civilizations) के लिए विचारों के आदान प्रदान के लिए एक सेतु की तरह था। इसने 1453 में क़ुस्तुन्तुनिया को जीतकर बीज़ान्टिन साम्राज्य का अन्त कर दिया। इस्ताम्बुल बाद में इनकी राजधानी बनी रही। इस्ताम्बुल (Istanbul) पर इसकी जीत (won) ने यूरोप में पुनर्जागरण (Renaissance) को प्रोत्साहित किया था। अर्तग्रुल गाज़ी के बेटे उस्मान ने इस्लाम की सबसे बड़ी और मजबूत सल्तनत कायम (to last) की जिसे हम और आप सल्तनत-ए-उस्मानिया के नाम से जानते है।
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