गोत्र आए कहां से और शादी में क्यों जरूरी? Where did gotra come from and why is it important in marriage?

शादी का वह वक्त/ Marriage Time याद है, जब फेरों से पहले पंडितजी हाथ में अक्षत रखकर कहते हैं-अपने गोत्र का नाम लीजिए और आप मंडप के नीचे बैठे अपने माता-पिता/ Mother-Father या किसी अन्य बुजुर्ग का मुंह ताकने लगते हैं। फिर उनमें से कोई आकर आपके कान में कहता है-कश्यप, शांडिल्य, गौतम या भारद्वाज…. और फिर रस्में आगे बढ़ जाती हैं। आखिर क्या है यह गोत्र/ What is gotra? सनातन धर्म में इसका क्या महत्व/ Importance of gotra है? आखिर शादी के दौरान क्यों पड़ती है इसकी जरूरत? सबसे पहले गोत्र शब्द का अर्थ/ Meaning of gotra समझते हैं। वैसे तो गोत्र की विद्वानों ने अलग-अलग व्याख्या की है पर हम यहां शाब्दिक अर्थ या लिट्रलल मीनिंग की बात करेंगे। ‘गो’ यानी इंद्रियां, वहीं ‘त्र’ से आशय है ‘रक्षा करना’। इस तरह से गोत्र शब्द का एक अर्थ हुआ-इंद्रीय आघात से रक्षा करने वाला, जिसका स्पष्ट संकेत हुआ ऋषि, क्योंकि ऋषि वही हो सकता है जो इंद्रियों को नियंत्रित/ Control the senses कर सके।

गोत्र आये कहाँ से हैं / Where did the tribes come from ?

अब सवाल यह है कि गोत्र आए कहां से? असल में गोत्र का प्रयोग पहचान के लिए होता है। आप किस गोत्र से हैं? आसान शब्दों में कहें तो इसका आशय आपकी पहचान से है? वंश से है? कुल से है? सनातन परंपरा के मुताबिक हम सभी ऋषियों की संतान हैं। प्राचीनकाल में चार ऋषियों के नाम से गोत्र परंपरा की शुरुआत हुई। ये ऋषि हैं-अंगिरा, कश्यप, वशिष्ठ और भगु। कुछ समय के बाद इनमें मदग्नि, अत्रि और विश्वामित्र ऋषियों के नाम जुड़े। इन ऋषियों के नाम पर सप्तऋषि तारामंडल भी है। बाद में इसमें अगस्त्य ऋषि का नाम भी जुड़ गया। जैन धर्म ग्रंथों में भी गोत्रा का जिक्र मिलता है मगर सिर्फ शुरुआती सात गोत्र का। गोत्र कब से आए? यह कह पाना मुश्किल है। समय के साथ अलग-अलग माइथॉलजी के ग्रंथों की व्याख्या के हिसाब से नए-नए ऋषियों के नाम जुड़ते रहे। वर्तमान में कुल 115 गोत्र प्रचलित हैं। कुल मिलाकर गोत्र यह बताते हैं कि हम किस ऋषि के वंश के हैं।

प्रवर क्या है / What is Pravara?

सनातन धर्म में गोत्र के अलावा व्यक्ति की वंशावली की पहचान प्रवर से भी होती है। प्रवर का अर्थ है -श्रेष्ठ। एक ही गोत्र की आगे की पीढ़ियों में कई ऋषि हुए। इनमें से कई अपने ज्ञान और सिद्धियों के कारण प्रसिद्ध हुए तो इनके नाम से प्रवर शुरू हो गया। उदाहरण के लिए ऋषि वशिष्ठ के गोत्र को देखें। आदिकाल से यह गोत्र वशिष्ठ के नाम पर था। आगे की पीढ़ियों में इसी गोत्र में आत्रेय और जातुकर्ण्य ऋषि भी हुए जो अपने ज्ञान और तपस्या के कारण बहुत प्रसिद्ध हुए। ऐसे मे इनके नाम से भी वंशावली की एक-एक शाखा विकसित हो गई जिसे प्रवर कहा जाता है। लेकिन इस प्रवर के मूल पुरुष वशिष्ठ ही माने जाएंगे। ऐसे ही भारद्वाज गोत्र के आंगिरस, बार्हस्पत्य, भारद्वाज या आंगिरस, गार्ग्य, शैन्य तीन प्रवर हैं

कैसे शुरू हुई शाखा / How the branch started ?

प्राचीन काल में ऋषियों का मुख्य काम था-ज्ञान अर्जित करना। उसकी रक्षा करना और उसे अगली पीढ़ी में स्थानान्तरित करना। ज्ञान की यह परंपरा मौखिक थी। अब ऐसे में मान लीजिए किसी एक ऋषि की कुल संतान को एक ऋग्वेद के संरक्षण का काम सौंप दिया गया। तो समस्या यह आई कि पहले तो हजारों श्लोकों को सही-सही याद रखा जाए फिर दूसरी पीढ़ी को उतने ही सटीक तरीके से इसे याद करवाया जाए। ऐसे में वेदों की शाखाओं का निर्माण हुआ। शुरुआत में ऋषियों ने एक गोत्र के लिए एक वेद के अध्ययन की परंपरा डाली थी। लेकिन ज्ञान के इतने बड़े भंडार को याद रखना लोगों के बस में नहीं रहा तो ऋषियों ने इसके लिए रास्ता निकाला। वह रास्ता था-शाखा। इस प्रकार से प्रत्येक गोत्र के लिए अपने वेद की एक शाखा का अध्ययन करना जरूरी कर दिया गया। बाद में यह शाखा व्यक्ति की पहचान से जुड़ गई। उदाहरण के लिए किसी का गोत्र अंगिरा, प्रवर भारद्वाज और वेद ऋग्वेद की पांच शाखाओं में से उसकी शाखा शाकल्प है। ज्ञान को संरक्षित करने की यह व्यवस्था लोगों की पहचान से जुड़ गई। चूंकि अध्ययन का काम ब्राह्मण ही करते थे, ऐसे में बाकी लोगों को बस गोत्र और ज्यादा से ज्यादा प्रवर ही याद रहा।

शादी के वक्त क्यों पूछा जाता है गोत्र / Why is gotra asked at the time of marriage?

शादी के दौरान पंडित वर और वधु से गोत्र पूछते हैं। इसकी वजह बहुत साफ है कि सगोत्रीय या एक ही गोत्र में विवाह सनातन धर्म के हिसाब से गलत है। मान लीजिए कोई व्यक्ति शांडिल्य गोत्र का है। यानी उसका वंश वृक्ष कहीं न कहीं शांडिल्य ऋषि से जुड़ेगा। ऐसे में यदि शांडिल्य गोत्र की लड़की से उसकी शादी का प्रस्ताव रखा जाए तो दोनों एक तरह गुरु भाई-बहन हुए या दोनों के बीच ब्लड लाइन का कोई रिश्ता बनेगा। सनातन धर्म के हिसाब से भाई बहन या एक ब्लड लाइन में शादी को गलत माना गया है। समय के साथ जैसै-जैसे विज्ञान का विकास हुआ सगोत्रीय शादी के विरुद्ध आधुनिक तर्क भी सामने आए जो कि जेनेटिक्स से जुड़े हुए हैं। एक गोत्र से जुड़े होने के कारण पुरुष या स्त्री के जींस भी काफी हद तक एक से होते हैं। ऐसे में यदि किसी के जींस में किसी बीमारी या अन्य दूसरे प्रकार के अवगुण हैं तो सगोत्री शादी के कारण ये उनकी संतानों में प्रभावी हो सकते हैं। इस लिहाज से भी सगोत्रीय शादी को ठीक नहीं माना जाता है।

कैसे पता करें अपना गोत्र /How to know your gotra ?

बहुत से लोग ऐसे होते हैं जिन्हें अपने गोत्र के बारे में नहीं पता होता है। वे अपने पूर्वज -दादा, परदादा आदि से गोत्र पता कर सकते हैं। खानदानी पुरोहित भी अपने जजमानों के गोत्रों का लिखित हिसाब-किताब रखते हैं। इसके अलावा जिन्हें अपने गोत्र का पता नहीं होता है। वे शादी या अन्य कर्मकांड के वक्त कश्यप गोत्र का उच्चारण करते हैं। माना जाता है कि कश्यप ऋषि की कई शादियां हुई थीं। अलग-अलग पत्नियों से उनके कई बच्चे थे। उन बच्चों से कई वंशावलियां बनीं। इसी आधार पर कश्यप गोत्र को सबसे बड़ा माना जाता है।


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